प्रोफेसर सिमरन और कोयना...
प्रोफेसर सिमरन की कहानी, जिसने कोयना की हार को जीत में बदल दिया।
कोयना के कॉलेज में एक बड़े से मेले का आयोजन हो रहा था। सारे बच्चे अपनीअपनी दुकान सजा रहे थे। कोई खेल के सामान का स्टॉल लगा रहा था, तो कोई खाने-पीने का। कोयना ने गोलगप्पे का स्टॉल लगाया था। उसके स्टॉल पर ढेर सारे लोग आ रहे थे। गोलगप्पे तो वैसे भी सबको पसंद थे। उसी के स्टॉल पर सबसे अधिक भीड थी। तभी एक लड़का अपनी छोटी बहन के साथ कोयना के स्टॉल पर गोलगप्पे खाने आया। उसकी बहन उससे पहले काफी कुछ खा चुकी थी, इसलिए वह गोलगप्पे नहीं खाना चाहती थी, पर वह लड़का जबर्दस्ती अपनी बहन को गोलगप्पे खिलाता जा रहा था। उस लड़की को उबकाइयां आ रही थीं। कोयना ने बोलना भी चाहा, पर उस लड़के ने किसी की न सुनी।
उसकी बहन ने जैसे ही एक और गोलगप्पा खाने के लिए मुंह खोला, उसे जोर की खांसी आई और फिर उल्टी हो गई। वहां खड़े सारे लोग पीछे हट गए। देखते ही देखते पूरे कॉलेज में यह बात फैल गई कि कोयना के स्टॉल के गोलगप्पे खाकर किसी ने उल्टी कर दी। कोयना के लिए तो जैसे वह उस दिन की बिक्री का अंत था। अब कोई भी उसके स्टॉल पर नहीं आना चाह रहा था। कोयना ने सफाई कर्मचारियों को बुलाकर अच्छे से सफाई करवाई, स्टॉल को और ज्यादा आकर्षक बनाया, फिर भी कोई उसके स्टॉल पर नहीं आया। यह देखकर कोयना एकदम निराश हो गई। ऐसा लग रहा था, जैसे वह स्टॉल ही उसकी जिंदगी की हार और जीत तय कर रहा हो। प्रोफेसर सिमरन यह सब देख रही थीं। वह कोयना के पास आकर बोलीं, क्यों नहीं हम दोनों यहां मौजूद हर स्टॉल वाले को गोलगप्पे खिलाएं। कोयना ने सोचा, वैसे भी कोई मेरे स्टॉल पर नहीं आ रहा। गोलगप्पे फेंके जाएं, उससे तो अच्छा है कि कोई इन्हें खा ही ले। देखते ही देखते कोयना और प्रोफेसर ने हर स्टॉल पर गोलगप्पे बांट दिए। उसका नतीजा यह निकला कि बाकी स्टॉल की भीड़ कोयना के स्टॉल पर आ गई।
Moral of the story - परेशानी में इतना भी नहीं डूब जाना चाहिए कि उपाय ढूंढने के लिए भी दिमाग न चले।
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