मुकेश प्रजापति, पिता और घास...

मुकेश प्रजापति की कहानी, जो पिता की सीख की वजह से बड़ा होकर व्यवसाय की बुलंदियों पर पहुंचे।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कुछ भारतीय दिग्गजों को सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। चर्चित व्यवसायी मुकेश प्रजापति को भी सम्मानित करने के लिए बुलाया गया। मुकेश मंच पर पहुंचे, तो उनकी आंखों में आंसू थे। बिना लाग-लपेट के उन्होंने कहना शुरू किया, जब मैं छोटा था, तो मेरे पिता ऑटो चलाया करते थे। उन्होंने मुझे कहा कि पढ़ाई के साथ-साथ कुछ काम भी करो।

मुकेश प्रजापति, पिता और घास...

 मैं तब छह साल का था, पर पिता जी रोज आधे घंटे मुझसे घास कटाई का काम लेते थे। हाथ से चलाने वाली एक मशीन से मैं घास काटा करता था। अंधेरे में मैं अक्सर कई कोने यह सोचकर छोड़ देता था कि कौन देखेगा। पर पिता जी की नजर बहुत पैनी थी। वह पकड़ लेते थे। कई बार तो पिता जी पर इतना गुस्सा आता था कि मन होता था, कहीं भाग जाऊं। गुस्से के लिए कई बार पिता जी से डांट भी पड़ी, उनके थप्पड़ भी खाए। पिता जी ने हमेशा यही सिखाया कि जरा भी काम नहीं छूटना चाहिए। काम बड़ा हो या छोटा, फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप उसे कैसे निभा रहे हैं, उससे जरूर फर्क पड़ता है। आज मैं समझ गया कि मेरे पिता जी बारीकियों पर इतना ध्यान क्यों देते थे। उन्हीं बारीकियों ने आज मुझे इस मुकाम तक पहुंचा दिया। जैसे-जैसे मैं बड़ा होने लगा। मेरा काम लोगों को दिखने लगा। काम से मुझे थोड़ी आय भी होने लगी। धीरे-धीरे मेरे । शौक ही मेरे रोजगार बन गए। पढ़ाई करते वक्त भी मेरा वही स्वभाव रहता, जो काम करते वक्त रहता और पढ़ाई के साथ-साथ काम करने से मुझे आगे पढ़ाई करने के लिए भी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ा। बचपन की आदत के कारण आज भी मैं काम अधूरा छोड़कर सो नहीं पाता। इसीलिए लगता है कि अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है। एक छोटी-सी आदत ने मेरी जिंदगी बदल दी। उस दिन स्टैनफोर्ड का हॉल काफी देर तक तालियों से गड़गड़ाता रहा।

Moral of the Story - बचपन में सिखाई हुई बातें जीवन को देखने का नजरिया बदल देती हैं।


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